आरक्षण की लड़ाई में अकेले भिड़े कुणाल,कहा कोई 1 रुपए की मदद को नही आया,अब ये जंग मेरे बच्चों को समर्पित..

रायपुर. आरक्षण के विरोध में सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने हाईकोर्ट में याचिका तो दायर कर दी हैं मगर वह जिस विशेष समाज को हक दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं वही समाज उनके साथ खड़ा नही होने का दर्द भी श्री शुक्ला को है खुद को समाज का ठेकेदार बताने वाले लोग आरक्षण की इस लड़ाई में साथ तो देना दूर इस मुद्दे के आसपास भी नही भटक रहे हैं।जिसे लेकर कुणाल शुक्ला ने बेबाकी से अपनी बात सोशल मीडिया के माध्यम से रखी है।

उनका कहना है कि 82 प्रतिशत आरक्षण के विरुद्ध हाईकोर्ट में दायर की गई रिट पिटीशन पर किसी ने आजतक 1 रुपए की मदद नहीं कि जबकि लोगो ने बड़ी बड़ी बातें जरूर की थीं।
कुछ लोग आरक्षण विरोध के नाम पर जम कर दलाली और दुकानदारी जारी रखे हुए हैं,चंदा खा रहे हैं, जबकि यह दलाली और चंदा खा जाने वाले लोग यह नहीं समझ हैं कि दरअसल इन लोग अपने बच्चों के फ्यूचर की दलाली कर रहे हैं और उसे ही खा रहे हैं।
ठीक है वकील साहब कह रहे है कि यह मुकदमा सिर्फ मेरे लिए वह 1 रुपए फीस में लड़ेंगे पर क्या हमारा फर्ज नहीं कि उन्हें भरपूर फीस हम मिलजुल कर दे।ऐसा लग रहा है कि मैं अपना कोई निजी संपत्ति के विवाद का केस हाईकोर्ट में लड़ रहा हूँ।
हाईकोर्ट में किसी भी पीआईएल अथवा रिट पिटीशन को दाखिल करने में पुख्ता तैयारियां लगती हैं,तीन बार डीजल जला कर 110 किलोमीटर दूर जाना भी पड़ता है,कलम की धार तेज़ करना पड़ता है अगर इसमें छोटी सी भी चूक रह जाये तो केस उड़ जाता है टिकता नहीं।
क्या आपको लगता है कि शासन के विरुद्ध लड़ना आसान बात है इन दिनों तैयारियों के बीच कई लोग आए और कहे गए यह कर देंगे वह कर देंगे पर हर किसी को मैनें यही कहा तुम लोग कुछ नहीं कर पाओगे क्योंकि मुर्दा समाज ने कई बार मुझे धोखा दिया है तथा इसके साथ मेरे पूर्व के एक भी अनुभव ठीक नहीं रहे हैं। सरकार के उच्च पदों पर बैठे समाज का एक ब्यूरोक्रेट तो पर्दे के पीछे से सामने आते तो अच्छा लगता पर शर्मनाक बात है कि कोई सामने नहीं आया।
मैनें वाकई किसी भी प्रकार की कोई उम्मीद नहीं पाली थी पर इन्ही लोग बातें करने जरूर चले आते थे।

ये लड़ाई मेरे बच्चों को समर्पित..

समाज के ठेकेदारो को आईना दिखाते हुए कुणाल शुक्ला कहते हैं कि वैसे जितने भी लोगों ने बड़ी बड़ी बातें की थीं उन सबको मैनें सिर्फ यही कहा था कि आरक्षण के विरुद्ध यह मुकदमा मैं अपने बच्चों बाबू और मिष्ठु के लिए लड़ूंगा,मेरी यह लड़ाई इन दोनों को समर्पित है,अब अड़ी तो हो गयी है हाईकोर्ट हो या फिर चाहे सुप्रीम कोर्ट मेरे घर का बर्तन भांडा तक बिक जाय फिर भी जीत के लिए लड़ाई तो जारी रहेगी।
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकीलों को उनकी फ़ीस मेरे द्वारा भरपूर दी जाएगी और उन्होंने समाज को हमेशा के लिए टाटा बाय बाय कहा समाज यानी सामान्य वर्ग..

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