शिवा कुमार
नई दिल्ली.कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिवों के साथ मुलाकात में एआईसीसी पहुंचे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का अंदाज बिलकुल बदला हुआ था। वे अध्यक्ष की हैसियत में नजर आए और सभी ने उन्हें हाथों-हाथ लिया. गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के बीच कांग्रेस के संगठन के चुनाव भी समाप्ति की ओर हैं। आखिरी कड़ी में राहुल का अध्यक्ष चुने जाने की घोषणा महज औपचारिकता है। इसकी दूसरी कड़ी में कोर कमेटी के सदस्यों के साथ राहुल की मुलाकात भी केंद्रीय कार्यालय में हुई जो इस बात का संकेत है कि पार्टी के दिग्गजों ने उपाध्यक्ष को अपना अध्यक्ष मान लिया है और उनके नेतृत्व में काम करने को आतुर है. राहुल ने पूर्व प्रधानमंत्री डा‐ मनमोहन सिंह, राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व केंद्रीय मंत्री पी‐ चिदंबरम, जयराम रमेश से अलग से बैठक की। इस कोर ग्रुप की बैठक से पहले राहुल ने अध्यक्ष की मुद्रा में नोटबंदी और जीएसटी से संबंधित अहम मुद्दों पर विभिन्न राज्यों के प्रभारी महासचिवों को आठ नवंबर को कांग्रेस की विपक्ष की भूमिका निभाते हुए देशभर में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को सफल बनाने का मंत्र भी दिया। राहुल गांधी पूर्ण रूप से पिछले कई महीनों से अध्यक्षीय भूमिका निभा रहे हैं जिसका सार्वजनिक रूप से एआईसीसी पहुंचकर राहुल ने अपने कार्यकर्त्ताओं को सकारात्मक संदेश दिया। इससे पहले इस प्रकार की मीटिंग कांग्रेस वार रूम में होती थी। कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं और नेताओं के उपाध्यक्ष पद पर भ्रम की स्थिति को तोड़ने के लिए इस मीटिंग को विशेष रूप से एआईसीसी में ही रखा गया, इस संदेश को देने में राहुल खेमा कामयाब रहा। राहुल, पत्रकारों से बात करते समय जिस आत्मविश्वास से लबरेज नजर आए, वह अपने आप में पूरी कहानी बताने के लिए काफी है। राहुल ने माना कि 8 नवंबर एक दुखद दिन है क्योंकि इसी दिन भाजपा सरकार ने देश पर नोटबंदी थोपी थी। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी देश के लोगों की भावनाएं ही नहीं समझ पाए। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि मुझे नहीं पता कि सरकार कैसे नोटबंदी का जश्न मना सकती है? नोटबंदी एक त्रासदी जैसी थी। मुझे लगता है कि पीएम मोदी को अभी तक आम जन की तकलीफों का ऐहसास नहीं हुआ। उन्होंने जीएसटी और नोटबंदी की तुलना मोदी सरकार के बम से की जो विनाश का प्रतीक होता है। राहुल ने माना कि जीएसटी तो अच्छी थी मगर केंद्र ने इसे गलत तरीके से लागू कर देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया। पत्रकारों से राहुल बात करके तो निकल गए, लेकिन कार्यकर्त्ताओं और इस खास बैठक को लेकर कांग्रेस के केंद्रीय कार्यालय में मंडरा रहे नेताओं में एक संदेश छोड़ गए कि वे अब पूर्ण रूप से पार्टी की दिशा और दशा को तय करेंगे। राहुल गांधी ने इशारों ही इशारों में महासचिवों को चेता दिया कि उनकी अगली पारी आसान नहीं है। उन्होंने विगत पांच महीनों में जिस तरीके से महासचिवों से उनके प्रभार छीने हैं, उसका संदेश साफ है कि राष्ट्रीय संगठन को छोड़कर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होने के लिए तैयार रहें। कुछ प्रदेशों में वर्तमान अध्यक्ष और प्रभारी अपनी सक्रियता को बढ़ाकर दौरे कर रहे हैं, उनसे भी राहुल नाराज बताए जाते हैं। हालांकि इस मीटिंग में पत्रकारों के समक्ष केवल जीएसटी और नोटबंदी की बातचीत को बताया गया, मगर सूत्र बताते हैं कि कई महासचिवों की राहुल ने जमकर क्लास की। जिन महासचिवों से वे नाराज दिखे, उनमें मुकुल वासनिक, मोहन प्रकाश, सीपी जोशी, वीके हरिप्रसाद प्रमुख थे। इन दोनों बैठकों में खास बात थी कि वरिष्ठता की वजह से मोतीलाल वोरा उनके बगल में थे और दोनों मीटिंग में महासचिव से अधिक गुलाम नबी आजाद उनके सलाहकार की भूमिका में अधिक सक्रिय दिखाई दिए। सूत्रों की माने तो कुछ महासचिवों के साथ उपाध्यक्ष की यह मीटिंग आखिरी मानी जा रही है.