‘राजकुमार सोनी’
रायपुर.प्रदेश में भाजपा की सरकार रहने के दौरान चम्मचगिरी के लिए मशहूर एक अखबार में बेहद रोचक खबर छापी है. खबर कुछ ऐसी है कि पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह सरकारी बंगले के लिए आवेदन नहीं करेंगे और 14 जनवरी तक मौलश्री विहार स्थित अपने नए बंगले में शिफ्ट हो जाएंगे.
खबर लिखने वाले की चिंता में यह बात भी शामिल है कि मुख्यमंत्री ( बघेल ) के करीबी लोग बार-बार मुख्यमंत्री निवास जाकर वहां की स्थिति क्यों देख रहे हैं. पाठकों को याद होगा कि जब जोगी सत्ता से बेदखल हुए थे तो अखबारों में खबरें छपती थीं- जोगी के बंगले में मिला हाइटेक गोपनीय कैमरा.जोगी के बेडरुम में मिला वायरलेस का जखीरा. जोगी के बेडरुम से निकलती थी एक गोपनीय सुरंग. यह सारी खबरें कितनी सच थी इसका पता या तो अखबार नवीस जानते थे… खुफिया विभाग के अफसर या फिर स्वयं जोगी.
बहरहाल राजनेताओं से लेकर पत्रकारों, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने तथा उनके फोन को टेप करने के लिए मशहूर रही पूर्व सरकार के कद्दावर अफसर कोई सुरंग बनाएंगे या कैमरा लगाएंगे इसे लेकर कुहांसा बना हुआ है. जो सरकार लोगों के विश्वास से ज्यादा साजिशों पर चलती रही हो वहां से कुछ भी प्रिय होगा इसकी उम्मीद कम ही करनी चाहिए. यह भी भूलना ठीक नहीं होगा कि अभी रमन सिंह के माथे से झीरम का बदनुमा दाग धुला नहीं है. यह दाग शायद तब तक बने रहने वाला है जब तक यह साफ नहीं हो जाता कि कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को मौत के घाट उतारने वाले वास्तव में नक्सली थे या आजमगढ़ के सुपारी किलर.
अब फिर बंगले की तरफ लौटते हैं. सवाल यह है कि जिस बंगले में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह गत पन्द्रह साल से बड़ी शानो-शौकत के साथ रहते आए हैं वह बंगला अब किसका है. जाहिर सी बात है कि नई सरकार के बनते ही इस बंगले पर नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का हक है, मगर इस हक को देने में भी नेतागिरी हो रही है. यह सही है कि बंगले को खाली करने के कुछ नियम-कायदे होते हैं. प्रक्रिया होती है. सामान्य शिष्टाचार में भी थोड़ी देर-सबेर हो सकती है, लेकिन मामला सचिन देव बर्मन के संगीत से सजी फिल्म काला पानी के गीत- नजर लागी राजा तोरे बंगले पर को चरितार्थ करता हुआ ज्यादा नजर आ रहा है. वैसे तो देश के सभी राजनेताओं ने अपने शरीर में संवेदनाओं की बूंद को प्रवेश देने से रोक रखा है.शर्म को स्थगित कर रखा है, छत्तीसगढ़ में यह स्थिति कुछ ज्यादा ही बरकरार है. अफसरों की करतूतों की वजह जिस सरकार को जनता ने खारिज कर दिया हो उस भूतपूर्व सरकार के लोग अब भी खुद को पद और प्रतिष्ठा के मोह से उबार नहीं पा रहे हैं. उन्हें यह समझने में न जाने कितना वक्त लगने वाला है कि लोगों ने चड्डी पहनकर फूल खिला है… गाने को सुनना बंद कर दिया है.
बेहतर होता है कि पद से उतरते ही पूर्व मुख्यमंत्री दूसरे या तीसरे दिन बंगला छोड़ देते. उनके इस कदम से एक अच्छा संदेश जाता. जिस मौलश्री विहार स्थित निजी बंगले में शिफ्ट होने की बात वे अब कर रहे हैं. वहां वे पहले ही चले जाते तो क्या नई सरकार उनकी गरिमा को ध्यान में रखकर कोई नया बंगला आबंटित नहीं करती. कुछ निजी और कुछ प्रशासनिक मामलों की वजह से लगातार चर्चा के केंद्र में रहे रमन के निज सहायक ओपी गुप्ता अभी चंद रोज पहले नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पहुना स्थित निवास के आसपास मंडराते देखे गए थे. ओपी गुप्ता के चाहने वालों ने बंगले के बाहर घूमती हुई उनकी तस्वीर के साथ यह मैसेज भी वायरल कर दिया था कि उन्होंने पाला बदल दिया है और जुगाड़ में लग गए हैं. बाद में गुप्ता को यह सफाई देनी पड़ी कि वे अपने साहब ( रमन सिंह ) के लिए नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से यह जानने गए थे कि कौन सा बंगला आवंटित किया जा रहा है. पता नहीं इस खबर में कितनी सच्चाई है कि नई सरकार रमन सिंह को जोगी का सागौन बंगला आवंटित करना चाहती है मगर वे वहां शिफ्ट नहीं होना चाहते. वैसे जोगी भी पूर्व मुख्यमंत्री हैं और पन्द्रह सालों से सागौन बंगले में ही जमे हुए हैं. हो सकता है कि सरकार उन्हें कोई अच्छा और नया आवास देना चाहती हो. वैसे विज्ञान को मानने-जानने वाले मानते है कि किसी भी बंगले का कोई वास्तु-शास्तु नहीं होता है, मगर जोगी के सागौन बंगले को लेकर यह बात भी प्रचारित है कि वहां जो कोई भी रहा है वह फिर दोबारा पनप नहीं पाया.
एक अच्छी बात यह है कि रमन सिंह सरकारी बंगले के बजाय मौलश्री विहार स्थित अपने निजी बंगले में शिफ्ट होने जा रहे हैं. मौलश्री विहार के आसपास एक तो करोड़पति मीडियाकर्मी भी रहने लगे हैं. खबर है कि जो मीडियाकर्मी करोड़पति है उनके ही बंगले की कीमत 35 से 40 करोड़ है. जब मीडियाकर्मी का बंगला ही 40 करोड़ के आसपास का है तो सोचिए पूर्व मुख्यमंत्री के बंगले की कीमत क्या होगी. बहरहाल भाजपा के प्रतिबद्ध और ईमानदार- मेहनतकश कार्यकर्ताओं के लिए खुशी की बात यह है कि अब वे मौलश्री विहार में अपने प्रिय नेता रमन सिंह से मिलने जा सकेंगे. इस दौरान वे यह भी देख सकेंगे कि उनके प्रिय नेता का बंगला कितना प्यारा है. कितना न्यारा है और कितना लाजवाब है.
पता नहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल किस तिथि को उस निवास में शिफ्ट होंगे जहां बाहर एक बड़े से पोस्टर पर लिखा है-
राहुल का छत्तीसगढ़िया शेर. जाने क्यों बंगले के विवाद पर गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता का एक अंश याद आ गया. जब मुक्तिबोध नागपुर से राजनांदगांव आए तो उन्हें एक राजा के भग्न महल में रहना पड़ा था.सामंतवाद के कट्टर आलोचक मुक्तिबोध ने तब लिखा था-
कमरा कुछ बड़ा है
कईयों ने किए वहां कामाचार
सर्ग और अध्याय कमरों की वस्तुओं में
भीतों पर दिखते हैं.
लिखे हुए/ बिक जाने पर भी यो
निम्न मध्यवर्ग के लिए भी
यही कमरा रिजर्व है.