श्रीमती वर्षा रोशन अवस्थी (मिट्ठू )..
पिता..
पिता शब्द ऐसा है, जिसमें मेरी दुनिया समाई है।
हाँ मै इक बेटी हूँ, मै अपने पिता की परछाईं हूँ ।।
मेरे पिता ही मेरा सम्बल है, मेरी शक्ति है।
मेरे पिता मेरी सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है।।
मुझे “गर्व “है, मै बिलकुल उनसी दिखती हूँ।
“अभिमान ” है, मै उनसा ही नेक दिल रखती हूँ।
“प्यार ” है, क्योंकि मै बिलकुल उनकी तरह ही हंसती हूँ।
“स्वीकार्य “है, की मै गलत बात नहीं सहती हूँ।।
जब बच्ची थी, पिता के आस – पास ही मेरी दुनिया समाई थी।
पापा ये, पापा वो कहकर, ना जाने कितने बार मैंने मम्मी से डांट खाई थी।
मेरी हर जरूरतें, “पापा” से शुरु होकर “पापा ” पर ही ख़त्म हो जाया करती थी।
ऐसे ही थोड़ी ना मै ” पापा की परी ” कहलाया करती थी।।
पिता का साया आपके सर पर हो या ना हो,
पर पिता हमेशा आपके साथ होते है।
पिता कभी कुछ खट्टा, कभी खारा तो कभी मीठा सा अहसास होते है।
वे हममे और हमारे संस्कारों में जिन्दा और हरपल दिलखास होते है।
“पिता” हम जैसे छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान होते है।।
पिता के इस प्यार, दुलार का न कभी कोई मोल चुकाया जा सकता है।
लेकिन खुद में जिन्दा रख उनके संस्कारों को,
हमेशा उनका मान बढ़ाया जा सकता है।
हमेशा उनका मान बढ़ाया जा सकता है।।
अक्षय तृतीया..
अक्षय तृतीया – अविनाशी, नित्य , अनंत, अक्षर।
ग्रीष्म ऋतु का है त्यौहार।।
उठ प्रातः ब्रम्ह मुहूर्त में,
करें विष्णु का ध्यान।
शांत चित्त करके तुम,
करो पूजा विधि -विधान।
संग मन ही मन करो,
गंगा जी का ध्यान।।
आज है अंत वसंत ऋतु का,
ग्रीष्म का है प्रारम्भ।
आज के दिन से ही करें शुभ,
दान दक्षिणा का आरम्भ।।
दान जो करें आज तो,
मिले स्वर्ग में उसका प्रतिफल।
लक्ष्मीनारायण को प्रिय लगे।
चढ़ायें सफ़ेद गुलाब, और सफ़ेद कमल।।
आज के शुभ दिन ही जन्में,
क्षत्रिय भृगुवंशी भगवान परशुराम।
कर समर्पित राम को धनुष बाण,
सीता स्वयंबर में।
चले बिताने सन्यासी जीवन,
रख फरसा भगवान श्री “”परशुराम “”।
""जय जय परशुराम ""