मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले स्थित भावखेड़ी गांव में दो दिन पहले एक चौंका देने वाला मामला सामने आया है। यहां दो दलित बच्चों की खुले में शौच करने पर पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इस अमानवीय भीवत्स घटना ने राज्य को कलंकित किया है। साथ ही हमारे समाज को भी सोचने पर मजबूर किया है कि हम किस दिशा कदम बड़ा रहे हैं। क्या यही हमारा विकसित मध्यप्रदेश है।
प्रदेश और देश को शर्मसार करने वाली घटना है। सिर्फ शौच करने पर हत्या कर देना प्रदेश के लिए कलंक है। इतिहास गवाह है कि देश के करोड़ों दलितों, पिछड़ों व धार्मिक अल्पसंख्यकों को सरकारी सुविधाओं से काफी वंचित रखने के साथ-साथ उन्हें हर प्रकार के जुल्म और ज्यादतियों का शिकार भी बनाया जाता रहा है। मध्यप्रदेश के शिवपुरी में दो दलित बच्चों की नृशंस हत्या इस बात का प्रमाण है। इस तरह की घटनाएं होना निश्चित रूप से सरकार, शासन और समाज के लिए सोचनीय विषय है। यदि ऐसी घटनाएं होती हैं तो कहीं न कहीं लोगों में कानून नाम का कोई डर या भय नही है। यह लचर कानून व्यवस्था का भी परिचायक हो सकता है। इस घटना ने हमें झंकझोर दिया है। इस तरह की घटना से मैं काफी आहत हू और अचंभित भी हू। कोई इस तरह भी नीचे गिर सकता है। महात्मा गांधी की डेढ़ सौ वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पूरे देश को खुले में शौच मुक्त घोषित करने वाले हैं, उसके पहले ही दरिंदगी ने एक बड़ा दर्द दिया है।
इस घटना ने यह बात फिर रेखांकित कर दी कि देश अभी खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त होने से कोसों दूर है और दलितों के लिए शौच जाना तक कितना कठिन है। घटना ने पिछले साल पूरे मप्र को कथित रूप से ‘खुले में शौच से मुक्त’ घोषित करने की कलई खोल दी है। यह भी उजागर हुआ कि समाज सुधार और समरसता के तमाम दावों के बाद भी दलितों और शोषितों के प्रति समाज के रवैए में कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। उनकी नजरों में आज भी दलित हीन हैं, बेचारे हैं। अब यह जिम्मेदारी सरकारों की बनती हैं कि वह इस तरह की घटनाएं दोबारा न हो इसके लिए कड़े कदम उठायें और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा दें ताकि और कोई इस तरह का घिनौना कदम न उठा सके।