- *रवि शंकर शुक्ला*
- बिलासपुर. बिगबी के एक गाने की हिट लाइनें थी “कौंआ हंस की चाल चले लंगड़ा कर थोड़ा-थोड़ा और एक गधे ने सोचा कि बन जाएं हम भी घोड़ा”और इस गाने को पूरी साज और आवाज दे रहे हैं शहर में नए आए सिखाड़ी आईपीएस उदय किरण। दिन-रात पढक़र उन्होंने कितनी मेहनत से आईपीएस का तमगा हासिल किया होगा। पर क्या फायदा भारतीय पुलिस प्रशासनिक सेवा का शाब्दिक अर्थ ही नहीं समझ पाए। ऐसे में तो लोग यूपीएससी वालों से पूछेंगे कि यह कैसा चयन कर दिए। अरे भाई, सेवा करनी है सेवा। अब प्रश्न है किसकी? तो आप कहोगे कि हम तो सरकार के सेवक हैं। फिर हम कहेंगे कि सरकार तो जनता की है ना। पर आप नहीं मानोगे क्योंकि अफसरी का रुतबा और अहंकार आड़े आएगा। माना कि बदनामी भी एक नाम है, शायद इसीलिए तो शुरूवात से ही जनता पर अफसरी झाडऩे लग गए आप। वैसे तो खाकी वर्दी अक्सर दागदार होती है लेकिन जब इससे कोई इंसानियत बाहर आती है तो एक नाम होता है। महोदय किरण जी यहां सीखने आए हो न। थोड़ा उस सिपाही नवल तिवारी से सीख लेते जिसने अपनी जान पर खेल कर एक बीमार को ट्रेन के पहिए के नीचे आने से बचाया है।
बड़े नसीब से मिलता है साहब, किसी को आईपीएस बनकर नाम रोशन करने का मौका। मौका मिला है तो क्यों इसे गंवाया जाए। कितने आए और कितने सीख पढक़र के गए यहां से और एडीजी तक बन गए। पर एकाध ही होगा जो ऐसा कोई बदमिजाज निकला होगा। वैसे बुरा बर्ताव किसी के साथ भी हो, होता बड़ा पीड़ादायक है। सबने विधायकों, सांसदों को पुलिस से बुराबर्तााव करते सुना होगा लेकिन हमने वर्तमान में एडीजी तब बिलासपुर के एसपी रहे आईपीएस को कोनी गांव की एक बुजुर्ग महिला को चांटा जड़ते देखा है जिसकी गूंज मध्यप्रदेश विधानसभा तक हुई थी। तब उस अफसर ने जो शालीनता का परिचय दिया उसे बीस पच्चीस साल बाद भी लोग नहीं भूल सके। मतलब पहला पाठ तो यह है कि जब कहीं नौकरी करने जाओ तो उस इलाके का इतिहास भूगोल जरूर याद कर लेना चाहिए। अभी आपको पच्चीस तीस साल नौकरी करनी है नए नए ओहदे सम्हालने हैं अभी से लाइन लैंथ बिगड़ गई तो जाने क्या होगा आगे। वैसे दोष आपका भी नहीं है प्रशासनिक सेवा में अधिकारी शब्द को ही निकाल दिया जाना चाहिए जो इंसान को अहंकारी बनाता है।
खैर हमें क्या, आपको दो चार माह यहां रुकना है। नया खून है, साहस होना भी अच्छी बात है। पर इस सवाल पर विचार जरूर करना कि इसका इस्तेमाल किसके खिलाफ होना चाहिए, जनता-जनप्रतिनिधियों पर या फिर गुंडे- बदमाशों पर कार्रवाई के रूप में।