‘OMG NEWS’ की स्पेशल रिपोर्ट पढ़िए लगातार..
बिलासपुर. सेंट्रल जेल की चार दिवारियो के बीच चल रहे काले कारोबार की एक और कड़ी ‘OMG NEWS NETWORK’ की पड़ताल सामने आई है। दो बार तबादला होने के बाद भी पिछले 12 साल से सेंट्रल जेल में जमे मुख्य प्रहरी (सहायक गोदाम इंचार्ज) जेल प्रबंधन की शह पर कैदियों के लिए आने वाले रसद में गोलमाल करने का खेल कर रहा है। कैदियों की थाली से निवाला कम कर सारा खेल पिछले कई वर्षों से बदस्तूर जारी है। आलम तो ये है कि प्रदेश में सरकार बदल गई। मगर जेल प्रबंधन और मुख्य प्रहरी की साठगांठ के फलस्वरूप कई पुराने थोक व्यापारियों की फर्म बिलिंग में गड़बड़ी कर सरकार को चुना लगा जेल प्रबंधन और मास्टर माइंड मुख्य प्रहरी की जेब भर रहे है।
सेंट्रल जेल के मुख्य प्रहरी और सहायक गोदाम इंचार्ज मारकंड बारिक के एक और कारगुजारी का खेल सामने आया है। प्रदेश में भूपेश सरकार लगभग अपना आधा कार्यकाल पूरा करने जा रही है मगर सेंट्रल जेल में पिछली रमन सरकार के पिछलग्गुओ की फर्म आज भी जमी हुई है। ‘OMG NEWS NETWORK’ की पड़ताल में इस बार सेंट्रल जेल के अधीक्षक एस के मिश्रा और उनके कुछ मातहत अधिकारी के द्वारा किस तरह से कैदियों के लिए आने वाले राशन में गड़बड़ी कर बिलिंग में हेरफेर किया जाता है। इस गणित का पता चला है पूरे काले कारोबार में खास बात तो यह है कि मारकंड बारिक की भूमिका इसमें भी मुख्य है। 12 साल से सेंट्रल जेल में जमे होने का फायदा उठा कर सहायक गोदाम इंचार्ज अधिकारियों की शह पर सरकार को चुना लगा अपने आकाओं और खुद की जेब भरने का सारा खेल कर रहा है। जेल मेनुवल के हिसाब से कैदियों को दिए परोसो जाने वाले खाने की मात्रा कम कर सारा काला कारोबार किया जा रहा है।
ऐसे गायब हो रहा कैदियों की थाली से निवाला..
‘OMG NEWS’ की पड़ताल में पता चला है कि पिछले करीब 20 वर्षों से अधिक शहर के कुछ फर्म सेंट्रल जेल में राशन,सब्जी से लेकर रोजमर्रा की आवश्यक सामग्री सप्लाई का काम कर रहे हैं। बताया जाता है कि सभी फर्म के संचालक पिछली रमन सरकार के रबर स्टैंप है। जेल मेनुवल के हिसाब से हर रोज एक कैदी को जो भोजन दिया जा रहा है उसकी मात्रा हिसाब से बिल्कुल आधी कर दिया जाता है। उस हिसाब से दोनो टाइम मिला कर सेंट्रल जेल के करीब 3000 कैदियों को एक दिन में कम परोसने का आंकड़ा सामने आया है। लेकिन इसका आधा कैदियों की थाली में देकर और आधा खुद की जेब डाल उक्त फर्मो से जेल मेनुवल के आधार पर बिल बनवाया जाता है। इससे ये तो साफ है कि आधा कैदियों के नाम तो आधा सेंट्रल जेल अधीक्षक एस के मिश्रा और उनके कुछ खास मातहत अधिकारी की जेब मे जा रहा है। भूपेश सरकार के गृह जेल विभाग को चुना लगाने का सारा जिम्मा सहायक गोदाम इंचार्ज के कंधों है। कई बार जिला प्रशासन के द्वारा जेल का औचक निरीक्षण भी किया जाता है मगर एक बड़ा सवाल है कि रसद में गड़बड़ी की बात सामने क्यों नही आती।
आगे और नाम होंगे उजागर..
जेल के भीतर चल रहे काले कारोबार का मुख्य सूत्रधार सहायक गोदाम इंचार्ज मारकंड बारिक के साथ जेल अधीक्षक के उन खास मातहत अधिकारियों और रसद,सब्जी और अन्य सामानों की सप्लाई करने वाली फर्मो का नाम जल्द उजागर किया जाएगा। वही जेल विभाग के अधिकारियों से हुई बातचीत में उनके बयान से भी अपने पाठकों को रूबरू कराया जाएगा।