मतदान दलों के दाना पानी के लिए चुनाव आयोग कंगाल, नतीजा खाद्य विभाग कर रहा लाखों की तोड़ी.

•प्रशिक्षण के लिए फूटी कौड़ी नहीं, मतदान दलों का दो दिन पेट भरने सिर्फ 150 रुपए.

बिलासपुर. इलेक्शन अर्जेन्ट के काम में लगे अधिकारी-कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिए चाय-नाश्ते का फंड चुनाव आयोग के पास नहीं है। चुनाव के लिए एक दिन पहले से लगने वाले इस अमले के लिए दो दिनों के दौरान सिर्फ 150 रुपए ही दिए जाएंगे। इतने में चुनाव कर्मी या तो चार टाइम का भोजन करे या राजनेैतिक दलों की रोटियां तोड़ें। पूरी चुनाव प्रक्रिया के दौरान यदि चाय-नाश्ता कराया जाएगा तो वह जिला प्रशासन का लोकल मैनेजमेंट होगा। इसकी जवाबदेही खाद्य विभाग पर डाली गई है।

बिलासपुर लोकसभा का चुनाव कराने जिला प्रशासन ने करीब दस हजार चुनाव अधिकारी-कर्मचारियों की ताकत झोंकी है। इसमें रिजर्व स्टाफ छोड़कर करीब साढ़े आठ हजार कर्मचारी अधिकारी चुनाव प्रक्रिया पूरी कराएंगे लेकिन इनके दाने पानी की व्यवस्था के नाम पर चुनाव आयोग के पास फंड के टोटे पड़े हुए हैं। इन हजारों कर्मचारियों को दो बार चुनाव कार्य का प्रशिक्षण दिया गया है। किसी प्रशिक्षण के दौरान सुबह से लेकर शाम तक छह घंटे तक घुट्टी पिलाने के बाद एक कप चाय तक नहीं दी गई। दूसरे प्रशिक्षण में चाय के साथ बिस्कुट के इंतजाम लेकर देकर किया गया था। अब सात मई को मतदान के लिए कर्मचारियों अधिकारियों को छह मई की सुबह से इंजीनियरिंग कालेज कोनी में लाइन लगना है। यहां से सामान उठाने के बाद वे घर नहीं जा सकते। सामान लेकर बूथ जाएंगे, वहीं रहना खाना सोना भी है। इस दिन यानी छह मई के लिए चाय नाश्ता या भोजन के लिए आयोग ने कोई फंड नहीं दिया है। अगले दिन सुबह सात मई को चुनाव आयोग मानेगा कि उनके लिए ड्यूटी हो रही है। इस दिन के लिए वह एक सौ पचास रूपए देगा इसमें कर्मियों को चाय नाश्ता और दोनों टाइम भोजन करना है। यदि बाजार से वह थाली मंगवाता है तो एक थाली के ही उसे 150 रूपए लग जाएंगे।

नेताओ के टुकड़ों का सहारा.

इधर मतदान दलों को राजनैतिक दलों के टुकड़े खाने पड़ेंगे चुनाव में कर्मचारी अपने लिए इंतजाम करने कहीं जा तो नहीं सकता। इसलिए उपवास रहकर चुनाव कराना लाचारी है। इस लाचारी को समझते हुए राजनैतिक दलों ने जो इंतजाम अपने एजेंटों के लिए किया है उसी की खुरचन उन्हें मिलेगी। निष्पक्ष चुनाव का तकिया पढ़े इन कर्मियों को कहीं नहीं कहीं नेताओं के टुकड़ों पर दिन काटना होगा।

नहीं दिखाई देता ऑब्जर्वरों को.

पर्यवेक्षक दिल्ली से यहां व्यवस्था देखने आ रहे हैं उन्हें दिख नहीं रहा है कि पेट काटकर दो तीन दिन कर्मचारियों अधिकारी आखिर कैसे चुनाव सही ढंग से करा पाएगा।

लोकल मैनेजमेंट बनाम हर संस्थान से एक से डेढ़ लाख तक की तोड़ी.

जिला प्रशासन ने आयोग के सामने मुंह खोलने के बजाय अपना लोकल मैनेजमैंट करने का रास्ता निकाला है। इसके तहत चुनाव में लगे अधिकारी-कर्मचारियों के पेट भरने की जिम्मेदारी खाद्य विभाग को सौंप दी है। बस यह मौका मिलना ही था कि खाद्य विभाग के फूड इंस्पेक्टरों ने मतदान उत्सव मनाना शुरू कर दिया। चुनाव कराने वाले अमले का पेट भरने खाद्य विभाग के अफसरों ने पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी, राइस मिलर्स के संचालकों और व्यापार विहार के थोक व्यापारियों से एक से डेढ़ लाख रूपए तक मांगना शुरू कर दिया। ताकि किसी का पेट भरे ना भरे अफसरों की जेब और पेट दोनों भरने लगा है।

आयोग ने दिए डेढ़ सौ रुपए.

सहायक निर्वाचन अधिकारी शिवकुमार बनर्जी ने कहा कि चुनाव कार्य के दो प्रशिक्षण के लिए आयोग से कोई फंड नहीं मिला है। इसे लोकल मैनेजमेंट के तहत किया जा रहा है। मतदान और मतगणना के दिन के लिए आयोग चुनाव में लगे अधिकारी- कर्मचारियों को एक सौ पचास रुपए या भोजन की व्यवस्था देगा।

नहीं कर रहे उगाही.

खाद्य नियंत्रक अनुराग भदोरिया का कहना है कि खाद्य विभाग को चुनाव आयोग से चुनाव अमले के प्रशिक्षण और मतदान, मतगणना आदि में भोजन, चाय-नाश्ता आदि के लिए फंड मिला है। इसके तहत व्यवस्थाएं की जा रही हैं। इसके लिए बाजार से उगाही से नहीं की जा रही है और न ही ऐसी कोई शिकायत मिली है।

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