छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस विशेष
“जनभाषा” से “राजभाषा” बनी “छत्तीसगढी “.!!!
छत्तीसगढ राज्य बनने के बाद जन आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु 28 नवंबर 2007 को छत्तीसगढ़ की विधानसभा ने सर्वसम्मति से छत्तीसगढी राजभासा ( संशोधन ) विधेयक – 2007 , पारित किया और हिंदी के अतिरिक्त “छत्तीसगढी” को सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता दी गई.
85% छत्तीसगढी – भाषायी लोगों की मातृभाषा छत्तीसगढी.
छत्तीसगढ के लोग छत्तीसगढी में केवल बोलते ही नहीं बल्कि सांस भी लेते हैं।
1956 के आसपास हुए राज्य पुनर्गठन की पृष्ठभूमि में उस अंचल में बोली जाने वाली भाषा ही मुख्य मुद्दा था. महाराष्ट्र, गुजरात आदि पृथक प्रांत इसी कारण बने ।पृथक छत्तीसगढ राज्य के लिए भी उसी समय सक्रिय आंदोलन प्रारंभ हुआ ।सन् 2000 में पृथक छत्तीसगढ राज्य के निर्माण का भी आशय केवल राजधानी बदलना नहीं था वरन् यहां की छत्तीसगढी भाषा और संस्कृति को मान्यता देना भी था ?
छत्तीसगढ की “चिनहारी”छत्तीसगढी है.
यदि किसी व्यक्ति की पहचान छिनना हो तो उसे उसकी भाषा से दूर कर दो ! हर किसी की चाहे वह कोई भी जीव या प्राणी हो ,अपनी पहचान होती है उसकी अपनी मातृभाषा। बिना “छत्तीसगढी” के भला छत्तीसगढ की क्या पहचान !
छत्तीसगढ़ी राजभाषा बने 17 साल हो गये.
2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना और 28 नवंबर 2007 में जनभाषा से राजभाषा बनी छत्तीसगढी। परंतु आज भी छत्तीसगढी को दोयम दर्जे का माना जाता है । राजभाषा का दर्जा पा कर भी छत्तीसगढ़ में न तो छत्तीसगढी में पढ़ाई लिखाई ही हो रही है और न ही कोई भी सरकारी कामकाज. यह कैसी राजभाषा है किसी राज्य की ????किसी भी राजभाषा का ऐसा अपमान और तिरस्कृत रुप हमें और किसी भी राज्य में देखने, सुनने को नहीं मिलता !!यह तो सरासर यहां की राजभाषा का खुलेआम अपमान है. छत्तीसगढ राज्य का निर्माण तो हुआ परंतु यहां की भाषा और संस्कृति को दरकिनार कर दिया गया.
पृथक छत्तीसगढ राज्य के आंदोलन का उद्देश्य
छत्तीसगढ की भाषा, लोक संस्कृति, लोक साहित्य, परंपरा, कला साहित्य, इतिहास को संरक्षित और संवर्धन के लिए था, इसी पवित्र उद्देश्य को लेकर छत्तीसगढ के महान व्यक्तियों ने आंदोलन किया था । पृथक छत्तीसगढ राज्य आंदोलन “कुर्सी” के लिए तो कतई न था. ये आंदोलन छत्तीसगढ के सांस्कृतिक पुनर्जागरण और पुनरुत्थान के लिए था. 1885 में छत्तीसगढी भाषा का व्याकरण , हिंदी के व्याकरण से पहले ही लिख लिया गया था ।जिसे धमतरी निवासी स्व हीरालाल चन्नाहू , ने लिखा था, जिन्हें काव्योपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया गया था. अंग्रेज़ी भाषाविद् जार्ज ग्रियर्सन ने 1920 में अनुवाद कर ए ग्रामर आफ दि डायलेक्ट आफ दी छत्तीसगढ इन द सेंट्रल प्राविन्सेस शीर्षक से जनरल आफ एशियाटिक सोसायटी आफ बंगाल के अंक 59 में प्रकाशित करवाया। बाद में 1921 में पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय ने इसमें थोड़ा संशोधन करके -ए ग्रामर आफ दी छत्तीसगढी डायलेक्ट आफ ईस्टर्न हिंदी के नाम से सी. पी. एंड बरार द्वारा दुबारा प्रकाशित करवाया.
छत्तीसगढ़ी प्रदाय भाषिक संदर्भ.
छत्तीसगढ़ी व्याकरण
हीरालाल काव्योपाध्याय
ए ग्रामर आफ छत्तीसगढी डायलेक्ट, जी ए गियर्सन 1890
ए ग्रामर आफ छत्तीसगढी डायलेक्ट आफ हिंदी
लोचन प्रसाद पाण्डेय
1921
लिस्ट आफ मोस्ट कामन छत्तीसगढी वर्ड्स एंड डिक्शनरी -ई डब्ल्यू मेनजेल
1939
छत्तीसगढ़ी,हल्बी,भतरी,गोंड़ , बोलियों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन
भालचंद्र राव तैलंग
1966
छत्तीसगढ़ी बोली व्याकरण और कोश
कांति कुमार
1969
छत्तीसगढ़ी का भाषा शास्त्रीय अध्ययन
शंकर शेष
1973
छत्तीसगढ़ी लोकोक्तियां का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन
मन्नूलाल यदु
1979
छत्तीसगढ़ी शब्द कोष
रमेशचन्द्र मेहरोत्रा, प्रेम नारायण दुबे
1982
आदि ..
अलग-अलग अवसरों पर अनेक जाने माने भाषा वैज्ञानिकों ने यह अपेक्षा की थी कि छत्तीसगढ़ी के विविध भाषिक पक्षों पर प्रामाणिक सामग्री छत्तीसगढ के प्रमुख विश्वविद्यालयों में उपलब्ध होनी चाहिए ।
शब्द यात्रा
“कोसल से छत्तीसगढ”
प्राचीन काल में यह क्षेत्र कोसल प्रदेश के नाम से विख्यात था । रामायण से लेकर महाभारत काल तक तथा प्राचीन इतिहास के युगों तक यह क्षेत्र कोसल के नाम से ही जाना जाता रहा है । सातवाहन,शक ,वकाटकों , नलों , नागों ,कलचूरियों , चालुक्य तथा बाणों ने समय समय पर यहां शासन किया.
सरकारी कामकाज की भासा कब बनेगी राजभाषा छत्तीसगढी.
छत्तीसगढ राज्य बने 24 साल हो गये । एक गबरू जवान का रूप धरे छत्तीसगढ अपनी पहचान, अपनी भाषा को पढाई लिखाई का माध्यम और सरकारी कामकाज की भाषा को कार्य रूप में परिणित होते देखना चाहता है. कोई भी भाषा तभी जीवित बची रह सकती है जब उस भाषा में पढ़ाई-लिखाई हो. यदि कोई भाषा मर जाती है तो संस्कृति भी समाप्त हो जाती है ,भाषा ,संस्कृति की संवाहक होती है.
यक्ष प्रश्न
17 साल हो गये छत्तीसगढी को राजभाषा का दर्जा पाये परंतु आज भी छत्तीसगढ़ में न तो कहीं कामकाज होते दिख रहा है और न ही दूसरे राज्यों के जैसे कहीं पर कोई छत्तीसगढी में लिखा कोई नाम पट्टिका दिखता है । छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग बना हुआ है और इस आयोग के अध्यक्ष, सचिव ,और सदस्यों की नियुक्ति साल दर साल होती रही है । अध्यक्ष महोदय लाल बत्ती पर घुमते और सचिव महोदय हंसी मजाक करते छत्तीसगढी भाषा का प्रचार प्रसार करते नजर भी आते हैं परंतु दुख इस बात का है कि राजभाषा छत्तीसगढ़ी , छत्तीसगढ के नक्शे पर कहीं नहीं लिखी दिखती.
केंद्र के निर्देश
बोर्ड, माइल स्टोन और दिशा संकेतकों में उपयोग करें लोकल भाषा . स्पष्ट रूप से लिखा गया है. केंद्र सरकार ने कहा है कि स्वायत्त निकायों , विभागों ,संबंद्ध कार्यालयों , उपक्रमों ,लोक संपर्क रखने वाले संगठनों , रेल्वे , भारतीय विमान पत्तन प्राधिकरण ,भारत संचार निगम लिमिटेड आदि में यह सुनिश्चित किया जाये कि नाम पट्टिकायें हिंदी और अंग्रेजी के साथ “स्थानीय भाषाओं” में भी हो ।यह निर्देश उन राज्यों के लिए बेहद उपयोगी है जिनकी अपनी लिपि है.
छत्तीसगढी भाषा की लिपि देवनागरी है
यह जानते हुए भी छत्तीसगढ़ सरकार खुलेआम केंद्र सरकार के आदेशों की धज्जियां उड़ा रही है ।
क्या राज्य सरकार…. छत्तीसगढ की छत्तीसगढी भाषायी लोगों से अपनी मातृभाषा, राजभाषा की अवहेलना होते देख किसी बड़े आंदोलन का इंतजार कर रही है या और कुछ ???? आज नोट और वोट की भाषा बनी छत्तीसगढी को बचाने के लिए ,जिनकी मातृभाषा और राजभाषा छत्तीसगढी है ,संरक्षण के लिए, आज कई संगठन सड़क की लड़ाई पर उतर आये हैं । समय रहते यदि छत्तीसगढी भाषायी लोगों की जनभावना का समर्थन नहीं किया गया तो अवश्य ही शांत कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में कहीं अशांत छत्तीसगढ का रूप देखना न पड़ जाये । छत्तीसगढ एक ऐसा राज्य जिसकी लिपि देवनागरी है , राजभाषा आयोग है फिर भी छत्तीसगढी हाशिए पर है ।तब भी हम सबको छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर बधाई स्वीकार है ??
लेखक – लता राठौर स्वतंत्र पत्रकार, सीपत रोड बिलासपुर.